देश में कपड़ों का कोहराम

लखनऊ(सौम्य भारत)। अब उनकी सांसें फूलने लगी थीं। चमकीले सलवार सूट और डार्क शेड्स वाले जम्फर के साथ कांजीवरम और बनारसी साड़ियां एक ही रैक में सजी थीं। बच्चों और बड़ों के लिए डिजानर शेरवानियां और कुर्ता पाजामा विशेष कवर में सील बंद सजे हुए हैं। पिछले डेढ़ महीने से उनको रोशनी भी नसीब नहीं हुई थी। झाड़ना पोछना तो दूर की बात थी। ईद और सहालग के लिए उन्हें मंगवाया गया था। कोई बंगलोर के गांवों से आया था तो कोई बनारस के। बच्चों की खुशी और सुहागिनों के अरमान सजाने के लिए ये सब दूर दूूर से आए थे। उनकी आंखों में चमक थी। उनकी आपस में बातचीत पहले तो कम ही होती थी जब दुकान खुलती थी क्योंकि उन्हें बार बार खोला और तहाया जाता था। कभी साड़ी जम्फर के नीचे आ जाती तो कभी सलवार सूट साड़ी की सवारी करने लगता। ऐसे में सांस लें कि बात करें।..
      'बहन, हमारे मालिक साहब का इंतकाल हो गया है क्या, जो हमें रोशनी तक नसीब नहीं हो रही है!" सलवार सूट ने साड़ी से मुखातिब होकर पूछा।
       'मुझे भी डर लग रहा है । अब तक तो सहालग के लिए किसी न किसी बहन ने मुझे खरीद ही लिया होता।" बनारसी ने अपनी शंका जाहिर की, 'बाहर भी कितना सन्नाटा है। बगल की दुकान का शटर भी तभी से डाउन है।"
       'अरे डाउन से एक बात याद आयी कि अपना हरिओम उस दिन क्या बता रहा था कि कोरोना वायरस फैलने से लॉक डाउन हो गया है। अब न कोई घर से निकलेगा और न दुकानें खुलेंगी।" सलवार ने अपने सिर पर हाथ मारतेे हुए कहा।
     'मुझे भी याद आया... अपना अब्दुल भी बता रहा था कि चीन से कोरोना वायरस दुनिया में लाखों की सांस की डोर काटकर इंडिया में आया है।" कांजीवरम बोेल पड़ी।
     'अरे अपनी दुकान में भी तो चीन की बनी सूटलेंथ इफरात में सजी हैं। चलो उसको सब मिलकर लतियाते हैं। इसे इतनी भी शर्म नहीं है कि हमारे देश में सड़ा गला दो नम्बर का माल बेंचकर, उसी पैसे से हमारे देश में जानलेवा कोरोना वायरस भेज दिया।" पटोला को गुस्सा आ गया।
      सूटलेंथ सहम गये। उन्हें नहीं पता था कि जिन हाथों से वे बनकर आये हैं वही हाथ लाखों बेगुनाहों के खून से सने हैं।
     तभी एक मोटा ताजा चूहा सुरंग खोदकर दुकान में घुसा। सब एकदम शांत हो गये। चूहे ने अंधेरे में दुकान का जायजा लिया। उसे लगा कि उसकी मेेहनत बेकार गयी यहां तो कुतरने खाने को बेस्वाद कपड़ों के सिवा कुछ नहीं है, वो वापस मुड़ ही रहा था कि किसी ने पूछ लिया,'भाई आप जो भी हैं बताएं कि बाहर का माहौल कैसा है? क्या कोरोना से लोगों की मौतें हो रही हैं। अपना मालिक भी क्या ...?"
      'नहीं वो रोज मुंह ढककर सुबह आते हैं। फिर पता नहीं आसमान की तरफ देखकर क्या पढ़ते हैं। तुम लोग उनकी सलामती की दुआ करो।" इतना कहकर वो जिस रास्ते से आया था निकल लिया।
      अगले ही दिन अल सुबह दुकान का शटर आधा खुला और झट से बंद हो गया। सूरज अभी नहीं निकला था। मालिक के साथ उसका बेटा भी अंदर आया। दोनों ने छोटे बड़े कुर्ते पाजामें और कुछ सलवार सूट उठाये। धीरे से दुकान का शटर उठाने लगे। दोनों की बातचीत से पता चला कि वे इस बार ईद में गरीबों को जकात के रूप में कपड़े देेंगे। सब अच्छे दिनों के ख्वाब में डूब गये। अब सूरज निकलने की तैयारी में था।