शालीन व मानव प्रेमी पक्षी होती हैं गौरैया



बबूल, कनेर, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस, चांदनी के पेड़ों को ज्यादा पसंद करती है गौरैया

लखनऊ(सौम्य भारत)। विकास की महत्वाकांक्षी इच्छाओं ने हमारे सामने पर्यावरण की विषम स्थिति पैदा की है, जिसका असर इंसानी जीवन के अलावा पश-पक्षियों पर साफ दिखता है। इंसान के बेहद करीब रहने वाली पक्षी व चिड़िया आज हमारे बीच से गायब होती जा रही है। कभी गौरैया की चहचाहट से पूरा आंगन गुंजा करता था वहीं आज उनकी एक आवाज सनने के लिए कान तरस जाते हैं। इसके अलावा अब वह दिन दूर नहीं, जब गौरैया हमेशा के लिए लोगों से दूर चली जाएंगी। गौरैया के इस तरह गायब होते जाने के कारणों की पड़ताल की जाए तो हम मनुष्यों की आधुनिक जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति उदासीनता इसका सबसे बड़ा कारण नज़र आती है। आधुनिक बनावट वाले मकानों में गौरैया को अब घोंसले बनाने की जगह ही नहीं मिलती। जहां मिलती है, वहां हम उसे घोंसला बनाने नहीं देते। अपने घर में थोड़ी-सी गंदगी फैलने के डर से हम उसका इतनी मेहनत से तिनका-तिनका जुटाकर बनाया गया घर उजाड़ देते हैं। इससे उसके जन्मे-अजन्मे बच्चे बाहर बिल्ली, कौए, चील, बाज जैसे परभक्षियों का शिकार बनते हैं। गौरैया छोटे पेड़ों व झाड़ियों में भी घोंसला बनाती है, लेकिन मनुष्य उन्हें भी काटता-छांटता जा रहा है। वह बबूल, कनेर, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस, चांदनी के पेड़ों को ज्यादा पसंद करती है। शहरों और गांवों में बड़ी तादाद में लगे मोबाइल फ़ोन के टावर भी गौरैया समेत दूसरे पक्षियों के लिए बड़ा ख़तरा बने हुए हैं। इससे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इसके अलावा उनके दाना-पानी की भी समस्या है। गौरैया मुख्यतः काकून, बाजरा, धान, पके चावल के दाने और कीड़े खाती हैं। हालत यह है कि आधुनिकता उनसे प्राकृतिक भोजन के स्रोत भी छीन रही है। विज्ञान और विकास के बढ़ते कदम ने हमारे सामने कई चनौतियां भी खड़ी की है, जिससे निपटना हमारे लिए आसान नहीं है।  20 मार्च को दनिया विश्व गौरैया दिवस मनाने के साथ साथ हर बार विश्व गौरैया दिवस की एक थीम रखी जाती है। 

गौरैया को बचाने के लिए स्कूली बच्चों को अभियान से जोड़ रहे है। उन्होंने बताया कि मार्च 2021 के अंतिम सप्ताह से लेकर अब तक सीबीएसई के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस प्रयागराज, नोएडा व दिल्ली वेस्ट के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण से लगभग 16 हजार शिक्षकों व उनसे जुड़े हजारों बच्चों से सीधा संपर्क कर उन्हें गौरैया की महत्ता से लेकर पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहा हूं। इसके अलावा छात्रों को जूतों, नारियल के रेशों व घास फूस को लेकर जीरो लागत के घोंसले बनाना सीखा रहा हूं। लोग अपने घरों में दीमक रहित प्लाई वाले कृत्रिम घोंसले जमीन से दो से छह मीटर की ऊंचाई पर लगा सकते है ताकि बंदर, बिल्ली व अन्य कोई बड़े पक्षी इसे नकसान न पहुंचा सकें।

- सुशील द्विवेदी, स्टेट कोऑर्डिनेटर विद्यार्थी विज्ञान मंथन व पर्यावरणविद

पिछले सात सालों से गौरैया को संरक्षित करने में प्रयासरत हैं।ये प्रत्येक वर्ष लखनऊ शहर के लोहिया पार्क,बेगम हजरत महल पार्क तथा कई अन्य पार्कों में पेड़ो पर बर्ड हाउस लगवाती हैं जिससे गौरैया की संख्या में वृद्धि हो। गौरैया का ब्रीडिंग टाइम मार्च से शुरू होकर जुलाई तक होता है इस लिए इस दौरान इनका अभियान तेज हो जाता है। जनेश्वर मिश्र पार्क के पास ये लोगो को मिट्टी के पॉट्स और काकून गिफ्ट में देती है।इनके अभियान के तहत लोगो के निवेदन किया जाता है कि वे चिड़ियों के लिए दाना और पानी रखने की अपील की।

- ओम सिंह, पर्यावरण प्रेमी, लखनऊ