साइकिल में आतंकवाद तलाशती एक सामंती सोच

लखनऊ(सौम्य भारत)। उत्तर प्रदेश के हरदोई की एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद बम धमाकों में साइकिल बम के प्रयोग का उल्लेख करते हुए गरीबों के भरोसे के वाहन-  'साइकिल' को आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की। आतंकवाद राष्ट्रीय प्रतिरक्षा के लिए एक चुनौती है। ऐसे संवेदनशील विषय पर सतही राजनीतिक आग्रह से प्रधानमंत्री का अतार्किक एवं गैर जिम्मेदाराना बयान अनजाने में केवल हास्य के निमित्त मात्र नहीं था, बल्कि यह उनकी क्षयग्रस्त सामंती एवं सांप्रदायिक सोच की उपज है। भारत में आतंकवादियों ने बम विस्फोट के लिए स्कूटर, कार और प्रेशरकूकर आदि का प्रयोग किया है तो क्या  प्रेशर कूकर की  शरणस्थली हर घर के किचन को आतंकवादी कहा जाएगा? मानव सभ्यता की विकास यात्रा में खच्चर की पीठ से उठकर अंतरिक्ष पर्यटन तक के समकालीन हासिल का प्रस्थान बिंदु साइकिल ही है। साइकिल को किसी एक देश, एक नस्ल, एक रंग, एक धर्म, एक जाति, विशेष कालखंड और राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह के रूप में देखना साइकिल की सीमा से अधिक उस व्यक्ति की स्वयं की दृष्टि सीमा को उजागर करता है। वस्तुत इस देश में सामंती विचार एवं स्थापित संस्थाओं ने किसान, बेरोजगार नौजवान, दलित, पिछड़े, आधी आबादी, अकलियत को बराबरी और सहभागिता हासिल करने के मार्ग में अदृश्य बाधा पैदा करने वाली मजबूत ग्लास सीलिंग तैयार की है। साइकिल के भरोसे हाशिए का समाज एक ओर इस ग्लाससीलिंग को तोड़ते हुए नजर आ रहा है। वही दूसरी ओर बड़ी तादाद में साइकिल सवारों की गतिशीलता बुलेट ट्रेन  की स्वप्निल दुनिया की चमक को गरीबी की धूल से ढकने का काम कर रही है।साइकिल फोबिया की मनोवैज्ञानिक जमीन यही है।साइकिल के बगैर भारतीय समाज की आंतरिक अंधेरी परतों की यात्रा असंभव है। साइकिल हमें सांस्कृतिक उपनिवेशिता की खुरदुरी जमीन तक पहुंचाती है, जहां दोहरी दासता (विदेशी दासता और आंतरिक जातिगत  दासता)से शोषित हाशिए का समाज  राजनीतिक परतंत्रता से मुक्ति के बावजूद सामाजिक सांस्कृतिक उत्पीड़न का शिकार है। निषेध, नियंत्रण और तिरस्कार- बहिष्कार की संस्कृति का  दंश इस हाशिए के वर्ग को झेलना पड़ रहा है। यह दंश सीमांत इंसानों में 'मनुष्यता बोध' को ही समाप्त कर रहा है। दलितों- अतिपिछड़ों को जूते चप्पल सर पर रखकर अपने घर के सामने से गुजरने की इजाजत देने वाले सामंती संस्कार को इनकी साइकिल की सवारी चुभती है। महानगरों में भी सड़क के किनारे रेंगती साइकिलों पर  महंगी कार से गुजरते अमीरों की झल्लाहट एवं नफरत देखी जाती है। यह नफरत महंगी गाड़ी के समानांतर स्वाभिमान के साथ गरीब साइकिल सवार के खड़े होने से उपजती है। तथाकथित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से दीक्षित राष्ट्र के प्रधान सेवक का दलित प्रेम केवल प्रचार की वस्तु है। उनके दिलो-दिमाग में आज भी गरीबों, दलितों- पिछड़ों के प्रति गरिमा का भाव नहीं है ,अन्यथा सार्वजनिक रूप से गरीबों के वाहन (साइकिल)को दहशतगर्दी से नहीं जोड़ते। गांव ,गरीब, किसान परिवार की बहनों को घर की चारदीवारी से बाहर विद्यालय के परिसर तक ले जाने वाली साइकिल आधी आबादी के सशक्तिकरण की प्रस्तावना लिखती है। पुरुष वर्चस्ववादी संगठन (संघ )के संस्कार में दीक्षित समकालीन सत्ताधारियों को शिक्षा के बल पर सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सशक्त होती स्थिति से चुभन पैदा होती है। आधी आबादी के जीवन को बेहतर बनाने एवं उन्हें बराबरी देने के हर प्रयास का संघ की सोच ने विरोध किया है। ‌राजा राममोहन राय जब सती प्रथा को प्रतिबंधित करने की मुहिम चला रहे थे। तब राधाकांत देव 'धर्मसभा' स्थापित कर सती प्रथा का गुणगान करते थे। दबी जुबान से राजस्थान के स्वयंसेवक आज भी सती प्रथा का गुणगान करते हैं। हिंदू कोड बिल  महिलाओं को बराबरी देने का महानतम दस्तावेज है। किंतु इस विधेयक पर भी  जनसंघ के सांसदों ने सदन के भीतर और करपात्री जी की रामराज्य परिषद ने सदन के बाहर हंगामा किया और संघ परिवार ने पूरे देश में इसके खिलाफ प्रदर्शन किया। इससे दुखी होकर बाबा साहब अम्बेडकर ने कानून मंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा और इस बिल के प्रति प्रतिबद्ध नेहरू जी को इसे टुकड़ों में पास कराना पड़ा। इन ऐतिहासिक साक्ष्यों से स्पष्ट होता है ,कि प्रधान सेवक गरीब बहनों के विद्यालय की सवारी का विरोध उनकी संघ की दीक्षा का स्वाभाविक विकास है।आजादी के बाद सर्वाधिक तेजी से बढ़ रही गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी की लपटों से देश झुलस रहा है। इससे पैदा होने वाले आक्रोश और जनप्रतिरोध को भटकाने और कुचलने के उद्देश्य से ही प्रधानमंत्री जी साइकिल पर हमलावर है। 2005 से 15 के दशक में उच्च विकास दर के कारण 27 कोरोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठकर मध्यवर्ग में शामिल हुए थे। 2021 में एक बार फिर उन्हें गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिए गया। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसार 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गए हैं। ऑक्सफैम और प्राइस की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है। कि पूरे विश्व का 60% मध्यवर्ग अकेले भारत में गरीबी रेखा के नीचे गया है। 97% जनता कि आय घटी है यह आबादी पहले से बदतर जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त हुई है। वहीं महामारी की आपदा में भी 2021 में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। 100 सबसे अमीर व्यक्तियों की सामूहिक संपत्ति 57.3 लाख करोड़ रूपया है जो देश के 55 करोड़ लोगों की संपत्ति के बराबर है।  अकेले अडानी की संपत्ति एक वर्ष 2020-21 में 8.9 अरब डालर से आठ गुना बढ़कर 50.5 अरब डालर हो गई है। बेरोजगारी दर 50 वर्षों के उच्चतम स्तर 7.9 फ़ीसदी पर है। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के अनुसार 15 करोड़ से अधिक लोग रोजगार गवा चुके हैं। प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार सृजन का दावा करने वाली भाजपा सरकार केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों के 60लाख सेअधिक  रिक्त पदों की भर्ती के प्रति आपराधिक उदासीनता प्रदर्शित कर रही है। पटना से इलाहाबाद तक रेलवे बोर्ड के खिलाफ छात्रों का असंतोष का अकारण नहीं है। एक तरफ सरकार की नीतियों से जनता की जेब खाली हो रही है, दूसरी तरफ महंगाई विकराल रूप धारण कर रही है। पेट्रोल डीजल सौ रुपए लीटर से ऊपर , सरसों तेल दो सौ रू लीटर से ऊपर, रसोई गैस सिलेंडर नौ सौ रु के पार पहुंच गया है। सड़क से रसोई तक आम उपभोक्ता महंगाई के लपट से झुलस रहा है और सरकार ताली बजा रही है।यह विडंबना है कि तख्त पर बैठे हर व्यक्ति को हाशिए के समाज छोटी-छोटी खुशियों और सुविधा पर भी गुरेज होता है । तुलसीदास ने हुक्मरानों की इसी प्रवृत्ति के बारे में लिखा है-  'ऊंच निवास नीच करतूति देखि न जाई पराय विभूती'। मूलतः सायकिल अन्याय, अत्याचार ,जुल्मऔर   जबरदस्तीके खिलाफ प्रतिरोध की प्रतीक है ।प्रतिरोध की ताकतों की संगठित शक्ति एवं उनके प्रतीक से हुक्मरानों में हमेशा भर पैदा करता है।फ्रांस की क्रांति के बाद भयभीत  रूस की जारशाही ने तो "प्रगति' शब्द पर ही प्रतिबंध लगा दिया था। साइकिल को आतंकवादी कहना शासक वर्ग के उसी वर्ग चरित्र के नैसर्गिक डर की अभिव्यक्ति है। यह साइकिल की सार्वकालिक प्रासंगिकता है कि आज के भूतल, रेलवे एवं वायु मार्ग के सभी साधन कार्बन उत्सर्जन के माध्यम होने के कारण धरती पर प्राणी मात्र के वजूद के लिए संकट बन रहे हैं। तब यह साइकिल ही है, जो पर्यावरण को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त रखती है और अपने सवार को शारीरिक व्याधियों से भी मुक्त रखती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं मानवतावाद का परचम लेकर वजूद में आई साइकिल में प्रतिरोध का गतिविज्ञान सतत अंकुरित होता रहता है यहआज नहीं कल वट वृक्ष की शक्ल लेगा जो शोषित पीड़ित वंचित तबके को बोधि वृक्ष की तरह शीतलता देगा। 

  (स्तम्भकार


जय प्रकाश पांडेय)