71वर्षीय रामनाथ ने पूरी की 51वीं कांवड़ यात्रा, लोधेश्वर धाम में किया जलाभिषेक

 कानपुर देहात से कांवड़ यात्रा कर पहुंचे राजधानी, हुआ स्वागत




खनऊ(सौम्य भारत)। कानपुर देहात के रामनाथ राजपूत अपने 71वें वर्ष पूरा करने के साथ साथ इस दौरान 51वीं कांवड़ यात्रा पूरी करने के बाद इस यात्रा का भी समापन करेंगे। उन्होंने 1970 से लगातार (कोरोना काल को छोड़कर) कांवड़ यात्रा जा चुके हैं। शुक्रवार को  डालीगंज लखनऊ में उन्होंने बताया कि वे इक्यावनवीं कांवड़ यात्रा पर निकले हैं। रमानाथ राजपूत भोले ने कहा कि एकही ठाँव पे ठहरेंगे तो थक जायेंगे, धीरे-धीरे ही सही राह पार कर जाएंगे। 

कानपुर देहात स्थित झिझक से बाराबंकी स्थित बाबा धाम की लगभग 250 किलोमीटर तक की पैदल यात्रा कर केसरिया रंग के वस्त्र धारण किए शिव भक्तों का जोरदार स्वागत हुआ। महंत रामनाथ राजपूत ने बताया कि वे पिछले 30 वर्षों से कानपुर से आने वाले कावरियों के जत्थे का संचालन कर रहे हैं और अब उम्र दिन प्रतिदिन जवाब दे रही है। इस लिए 51 कावड़ यात्रा का समापन करेंगे। उन्होंने बताया कि 51 वर्ष में कम से कम सैकड़ों लोगों को भगवान भोले नाथ का जलाभिषेक करने के लिए लोधेश्वर धाम की यात्रा कराया। उन्होंने बताया कि हमारे सभी कावड़ियों को महाशिवरात्रि पर्व पर लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक का असीम पुण्य फल प्राप्त हुआ है। कावड़ियों के महंत रामनाथ राजपूत के साथ राजू राजपूत, विकास, कृष्णा अनिल सहित 24 लोगों का कावड़ियों का जत्था बिठूर कानपुर से गंगाजल लेकर से लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक करने के लिए कांवरियों का जत्था लखनऊ से बाराबंकी लोधेश्वर धाम के लिए रवाना हुआ। इस दौरान राजधानी में शिव भक्तों ने जगह-जगह उनका स्वागत किया गया। उन्होंने बताया कि वे शनिवार को सुबह लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक करेंगे। इसके बाद घाघरा नदी में स्नान करने के बाद लोधेश्वर बाबा धाम पर भंडारा कर कांवरिया का जत्था बाराबंकी स्थित रेलवे स्टेशन से ट्रेन से बिठूर अपने गांव पहुंचेगा। गौरतलब है कि कांवड़ यात्रा समुद्र मंथन के दौरान महासागर से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था। तब से उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। जहर का असर को कम करने के लिए देवी पार्वती समेत सभी देवी-देवताओं ने उन पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया, तब जाकर शंकर विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए थे। यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा की भी शुरुआत हो गई। पण्डित ओजोव्रत शास्त्री ने बताया कि कावंड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को एक साधु की तरह रहना होता है। गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का पूरा सफर भक्त पैदल, नंगे पांव करते हैं। यात्रा के दौरान किसी भी तरह के नशे व मांसाहार की मनाही होती है। इसके अलावा किसी को अपशब्द भी नहीं बोला जाता। स्नान किए बगैर कोई भी भक्त कांवड़ को छूता नहीं है। आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन व नमक का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है। इसके अलावा चारपाई पर ना बैठना जैसे अन्य नियमों का पालन करना होता है।