लोकतन्त्र में कोई भी कार्य बिना विधायिका के संभव नहीं : न्यायमूर्ति वीरेन्द्र सिंह

- न्यायपालिका में कुछ परिवारों का वर्चस्व है कायम
लखनऊ(सौम्य भारत)। सामाजिक चेतना फाउण्डेशन उ0प्र0 के तत्वावधान में शनिवार को वीडियो कॉन्फेंसिगं के माध्यम से एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का मुख्य विषय "न्यायपालिका में ओबीसी एससी एसटी का उचित प्रतिनिधित्व कैसे सुनिश्चित किया जाए" था, गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने कहा कि न्याय पालिका में अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना अत्यंत ही आवश्यक है इसके लिये हमें पहले विधायिका में प्रतिनिधित्व लेना होगा। क्योंकि लोकतन्त्र में कोई भी कार्य बिना विधायिका के संभव नहीं है। जस्टिस वीरेंद्र सिंह जी ने कहा कि जब तक विधायिका में पिछड़े व दलित वर्ग का अनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं सुनिश्चित होगा। तब तक न्यायपालिका में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है। दिल्ली से वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता डॉ अनिल जयहिंद ने कहा कि न्यायपालिका में सभी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए इसको लेकर एक जनांदोलन बनाकर ही न्यायपालिका में अनुपातिक प्रतिनिधित्व लाया जा सकता है। उन्होंने कहा आज न्यायपालिका में परिवारवाद अपने चरम पर है, जिसके कारण आज न्यायपालिका में कुछ परिवारों का वर्चस्व कायम हो गया है। अवकाश प्राप्त न्यायाधीश बीडी नकवी ने कहा कि जनांदोलन बनाने के लिये हमें पहले संगठन मजबूत करना होगा तभी ये आंदोलन जन आंदोलन बन पाएगा। उन्होंने कहा कि इसको लेकर हमें देश, प्रदेश, जनपद से लेकर ब्लाक, ग्राम व बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करना होगा उसके बाद जन आंदोलन खड़ा होगा। कार्यक्रम में किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से प्रो बी सुरेश ने कहा बिना न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किए हम अपने समाज के साथ न्याय कर पाए यह संभव नहीं है इसलिए न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व अत्यंत आवश्यक है। गोष्ठी में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो राजेंद्र वर्मा, लखनऊ विश्वविद्यालय के डॉ राजेश कुमार व इंजीनियर अभिषेक यादव ने प्रतिभाग किये। गोष्ठी के अंत में सामाजिक चेतना फाउण्डेशन के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र कुमार ने सभी अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित कर गोष्ठी का समापन किया।