विदेश का मोह छोड़ने व भ्रम निकलना है कि बगैर अंग्रेज़ी के काम नहीं होगा: पार्थो

लखनऊ(सौम्य भारत)। नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजकीय महिला महाविद्यालय के तत्वावधान में गुरुवार को वैश्विक महामारी कोविड से उत्पन्न चुनौतियों को लेकर एक अंतर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन सोशल मीडिया ज़ूम के माध्यम से किया गया। सेमिनार के प्रमुख वक्ता लंदन स्कूल ओफ़ एकनामिक्स से सम्बद्ध तथा केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों में रणनीतिक सलाहकार के रूप में कार्य कर रहे विश्व विख्यात विद्वान पार्थो पी कर ने कोविड के बाद उत्पन्न होने वाली आर्थिक एवँ सामाजिक चुनौतियों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तेरहवी तथा चौदहवीं शताब्दी में जब यूरोप के देशों में प्लेग महामारी फैली तो लोगों का चर्च की संस्था में विश्वास लगभग समाप्त हो गया था। यह इक्कीसवी शताब्दी है कोविड के पश्चात सबसे ज़रूरी होगा की विभिन्न सरकारी संस्थाओं में लोगों का विश्वास बना रहे। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद सामाजिक विषमता में कमी आएगी तथा लगभग अस्सी प्रतिशत लोग सामाजिक समानता की ओर बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि अब विकास की धारा शहरों से गाँव की ओर करनी होगी। श्री पार्थो ने कहा कि अभी जनवरी फ़रवरी तक ऐसी स्थिति रह सकती है। अब ग्रामीण मज़दूरों को सौ दिन का नहीं बल्कि वर्ष भर का काम देने पर विचार करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि एक सकारात्मक प्रभाव ये हो सकता है की हम पुनः संयुक्त परिवार प्रथा की ओर लौट आयें। श्री पार्थो ने कहा कि हम सब को सामना करना होगा अकेले हमारे अमीर होने से काम नहीं चलेगा। अमीर होकर एक गरीब देश में रहने से अच्छा है कि हम अमीर होकर अमीर देश में रहे तभी जीवन का आनंद उठा पायेंगे।
इस दौरान आइआइ एम के प्रो बी के मोहंती ने कहा कि ग़रीबों व पिछड़े क्षेत्रों में विशेष कार्य करने की आवश्यकता है। हमें विदेश का मोह छोड़ने के साथ साथ यह भी भ्रम निकलना होगा की अंग्रेज़ी के बिना काम नहीं हो सकता। विश्व के बड़े बड़े देश अपनी भाषा में काम कर रहे हैं।
जे एन यू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष तथा साउथ असीयन विवि दिल्ली के प्रो धनंजय त्रिपाठी ने कहा कि कोविड के बाद १९३० जैसी मंदी हो सकती है तथा विश्व अर्थव्यवस्था तीन प्रतिशत तक गिर सकती है। ऐसे में रोज़गार पर तथा जन स्वास्थ्य पर बहुत प्रयास करना होगा।
प्राचार्य प्रो अनुराधा तिवारी ने कहा कि आज के परिवेश में शिक्षकों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण हो गई है। शिक्षण में आमूलचूल परिवर्तन के लिए हमें खुद को अप्डेट रखना होगा। इस दौरान डॉ जय प्रकाश वर्मा, समन्वयक डॉ श्वेता भारद्वाज डॉ बृजबाला, डॉ रश्मि बिस्नोई, डॉ शिवानी, डॉ शरद वैस्य, डॉ क्रांति, डॉ प्रतिमा, डॉ भास्कर शर्मा मौजूद थे।