कोरोना संकट ने इन्हें भी कामकाजी बना दिया

लखनऊ(सौम्य भारत)। घर के बाहर कोई आहट हुई नहीं कि मन शंका से घिर जाता है। किसी ने आवाज लगायी तो झट खिड़की से गेट की तरफ नजर जाती है। लगता है लॉक डाउन से हमारी सुनने और महसूस करने की शक्ति में इजाफा हो गया है। जब से लॉक डाउन शुरू हुआ तभी से सब्जी वालों की आमद भी बढ़ गयी है। पहले दिन भर में चार-पांच चिरपरिचित सब्जी वालों की आवाज सुनाई पड़ती थी, लेकिन अब उनमें से एक भी आवाज़ नहीं आती है, लेकिन अब सुबह छह बजे से ही सब्जी और फल वालों की हांक सुनाई पड़ने लगती है। जो शाम ढलने तक जारी रहती है। बीस दिन पहले सुबह की चाय पीते समय हमारा ध्यान इस ओर गया। दूर से आवाज आ रही थी...कबाड़ी वाला... तुरंत दिमाग ने पैर को सिग्नल दिया और मैं उठ खड़ी हुई। आँगन में पुराना अख़बार बाँध कर रखा था पतिदेव ने टोका कहाँ चली... मैंने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया कबाड़ बेचने फिर उनकी आवाज सुनाई पड़ी अरे, लॉक डाउन में कौन कबाड़ी आएगा?... मैंने सब अनसुना किया क्यूंकि आँगन साफ होना ज्यादा जरुरी था। गेट तक पहुँचते ही भ्रम टूट गया... सामने से ठेलिया चलाते वह हांक लगा रहा था...सब्जीऽऽऽ वालाऽऽऽऽ.. उसकी टोन कबाड़ी वाला जैसी ही थी। गेट की तरफ मुझे आता देख वह रुक गया... आलू-प्याज ले लीजिये बहन जी... मैं खुद को रोक नहीं पाई। होली के पहले तुम ही यहाँ से कबाड़ ले गए थे? अख़बार रखा है ले जाओ... उसने जवाब दिया कि अभी कबाड़ का धंधा बंद है. पेट भरने के लिए आलू-प्याज बेच रहे हैं।
थोड़ी देर बाद फिर मेरे कानों में आवाज पड़ी... दस में दस खीरे ले लो। दस में आठ खीरे ले लो... ये आवाज बच्चों की थी। मैं गमलों में पानी डालना छोड़ कर फिर गेट पर पहुँच गयी। ठेले पर खीरे सजाये तीन बच्चे एक दूसरे से तेज आवाज़ में ग्राहक बुलाने के प्रयास में जुटे थे। एक ने कमर पर एक छोटा बच्चा टिकाया हुआ था। फिजिकल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए मैंने एक टोकरी रख दी और उन्हें दस खीरे देने को कहा। उत्सुकतावश पूछा कहाँ रहते हो? सब एक साथ बोल पड़े आगे चौराहे के पास। मैंने कहा पहले तो तुम्हें नहीं देखा। छोटी लड़की धीरे से बोली आंटी पापा गाड़ी चलाते थे। बंद के कारण घर में दिक्कत है। बड़े भाई ये ठेला किराये पर ले आये हैं। सुबह-शाम वह सब्जी बेचते हैं। जब वो घर आते हैं तब हम सब खीरा लेकर निकलते हैं। मैने उन्हें दस के बजाय बीस रुपया दिया तो छोटी बच्ची ने ये कह कर लौटा दिया की आंटी दस में दस खीरा है। मैने कहा अभी सब्जी वाला दस में छह खीरा दे रहा था। तुम इतना सस्ता क्यों बेच रही हो? उसने बड़ी मासूमियत से कहा भाई ने यही रेट में देने को कहा है। फिर मुस्कुरा कर बोली सस्ता देंगे तो ज्यादा बिकेगा... फिर ज्यादा रुपया मिलेगा। मैंने रुकने का इशारा किया और अन्दर से बिस्किट का पैकेट लाकर उसे दिया। पहले तो वह सकुचाती रही फिर बहुत कहने पर ले लिया। मुंह पर कपडा बाँध कर निकला करो, ये हिदायत देकर मैं भारी मन से अन्दर आ गयी। पोस्ट के साथ इन्हीं बच्चों का फोटो शेयर किया है। कोरोना संकट ने इन्हें कामकाजी बना दिया है।
गेट के बाहर कुत्तों को रोटी खिला रही थी। तभी दूर से ई-रिक्शा आता दिखाई दिया। मैं उत्सुकता में लगातार उस ओर देखती रही। ई-रिक्शा मेरे घर से पहले रुक गया। पड़ोस के घर के गेट पर खड़े एक सज्जन ने शायद आवाज देकर रोका था। वह फल को लेकर मोलभाव कर रहे थे। संतरा, तरबूज, केला और अनानास नजर आ रहे थे। अपरिचित फलवाले को लेकर मन में जिज्ञासा हिलोरे ले रही थी। पड़ोसी से फारिग होकर वह मेरे सामने आ गए- फल ले लो बिटिया, इतना सस्ता कोई नहीं देगा। मेरी दिलचस्पी फल से ज्यादा उनमें थी। बात आगे बढ़ाने के लिए मैंने संतरा तौलने को कहा साथ ही पूछ लिया आप पहली बार इधर आये हैं... वह थोड़ी देर शांत रहे। फिर बोले- ई-रिक्शा बंद है कितने दिन घर में बैठेंगे तो खायेंगे क्या...मजबूरी में फल बेच रहे हैं। ठेला-ठेलिया है नही, ई-रिक्शे पर ही फल रख कर निकले है। पुलिस रोकेगी तब देखेंगे। उस दिन के बाद वह फिर नजर नहीं आये, शायद पुलिस ने ई-रिक्शा चलाने से रोक दिया हो। अगले दिन फिर एक अपरिचित आवाज़ ने मुंडेर से झाँकने को मजबूर किया. ठेलिया पर हरी सब्जी सजाये लड़का पालक...शिमलामिर्च.. अदरक... कद्दू... लौकी... बोलते चला आ रहा था। करीब आने पर जींस-टी शर्ट पहने सब्ज़ी वाले को आवाज देकर रोका। ब्लैक मास्क लगाये इस लड़के की बातचीत का लहजा उसे परंपरागत सब्जी वाले से अलग कर रहा था। टोकरी में सब्जी रखने के बाद उसने फटाफट हिसाब लगाया मैडम 210 रूपये हुए... क्या पानी पिला सकती हैं? मैंने बेटे को पानी लाने को कहा फिर बात आगे बढ़ायी इस इलाके में नये लगते हो? उसने तुरंत जवाब दिया मैडम आपने सही कहा। कोलकाता से बहन के घर आया था वो नौओखेडा में रहती है फिर लॉक डाउन हो गया वापस नहीं जा पाया। वहां एक फैशन स्टोर में सेल्स का काम देखता था। बहन पर कब तक बोझ बन कर रहता। पड़ोस की मौरंग की दुकान से ये ठेलिया ली है। सब्जी बेचने पर रोक नहीं है, इसलिए यही बेच रहा हूँ। तब तक बेटा पानी ले आया उसने मुंह से मास्क हटा कर पानी पिया। थैंक यू बोल कर मुस्कुराया और बोला भला हो इस मास्क का जो कोरोना से बचाएगा और कोई जान पहचान वाला पहचान भी नहीं पायेगा। इसके बाद आज ही बनारस में रह रही मम्मी का हालचाल लेने के लिए फ़ोन किया तो अपनी आदतानुसार वह पूरे मोहल्ले का हाल बताने लगी। कॉलोनी के मोड़ पर चाय की दुकान चलाने वाला, चाट वाला, दोसे के ठेले वाला... यहाँ तक की चाऊमीन वाला भी अब सब्जी-फल बेच रहा है। मैं उनकी बात सुन रही थी तभी बाहर से एक और सब्ज़ी वाले की आवाज आई और मैं मम्मी को प्रणाम कर चल पड़ी गेट की तरफ एक और अपरिचित आवाज़ की कहानी जानने।