अनपढ़ों की जमात...

लखनऊ(सौम्य भारत)। अनपढ़ों की जमात का ये किस्सा काफी पहले का है। बस यूं ही याद आ गया। एक कामवाली बाई थी, नाम था पूनम। वह घर-घर में बर्तन मलती आैर अपने घर परिवार का भरण-पोषण करती थी। उसका आदमी महा निठल्ला था। उसे मारता-पीटता आैर वह जो भी कमा कर लाती थी तो वह दारू में उड़ा देता था। उसने अपनी बड़ी लड़की मुन्नी का रिश्ता उससे उम्र में काफी बड़े एक आदमी से तय कर दिया था। लड़की की उम्र कोई पंद्रह साल की रही होगी। लड़की होशियार थी। वह पढ़ना चाहती थी। वह अक्सर अपनी मालकिन के पास आकर पढ़ाई-लिखाई की बातें करती थी। मालकिन भी चाहती थीं कि वह कुछ पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। उसकी मां चाहती थी कि उसे किसी शरीफ आदमी के घर में फुल टाइम मेड सर्वेंंट के रूप में नौकरी मिल जाए। मालकिन ने उसे समझाया कि आज कल किसी का भरोसा नहीं है। उसे पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाओ। वह अपना रास्ता खुद बना लेगी। पूनम अक्सर मार खाकर आती आैर मालकिन के सामने अपना रोना रोती। मालकिन अगर उससे उसके आदमी को छोड़ने की बात करती तो उसका जवाब होता, 'कैसे छांड़ दें, हमारा मरद है... हमका उससे लब है।' घर के सारे बर्तन तक उसके आदमी ने बेंच दिये थे। घर क्या था बस राम मड़ैया थी। जो भी चाहता पर्दा हटाता आैर मुन्नी को ताक कर चला जाता। खूबसूरत नैन नक्श वाली मुन्नी त्यौरियां चढ़ाकर, झांकने वाले को गालियां बकते हुए दूर तक दौड़ा देती। वह रोज नये-नये किस्से मालकिन को बताती। एक दिन उसने बताया कि किसी लड़के से उसका इश्क हो गया है। लड़का एक बड़े साहब के घर में फुल टाइम नौकर था। वह उसके लिए नये-नये कपड़े लेकर आता तो वह अपनी मां से छिपाकर मालकिन के पास रखवा जाती। दोनों का इश्क परवान चढ़ रहा था। मेकअप का सामान से लेकर आर्टीफीशिएल ज्वेलरी भी उसके कलेक्शन में जमा हो रही थी। एक दिन वह अपने प्रेमी की कुण्डली बनवाकर कुण्डली रीडर मालकिन से बोली - हमारी कुण्डली मिला दो। कुंडली रीडर ने बताया कि यह लड़का तुम्हें एक दिन धोखा देगा। मुन्नी ने उससे मिलना-जुलना कम कर दिया। एक दिन पूनम मालकिन के घर आ धमकी। पूनम ने हकलाते हुए कहा, 'हमार मरद कहत रहा कि शहर में कर्फ्यू लगे वाला है। पुलिस आैर सइगर मलेटरी लगी है। लोग तो आपन समान लेकर गांव जाए की तैयारी मा हैं। हमरे लगे पइसा नाहि है, हम कहां जाई। हमका आप अपने घर मा राखि लेओ।' मैंने पूछा कि तुम्हारा आदमी कहां है तो उस पर वह रोते हुए बोली - 'साहेब ऊ तो मुन्नी को लेकर चला गवा। कहत रहा कि लड़की जात है उकेर रक्सा को करि।' हमारे समझाने-बुझाने पर शाम तक वह घर चली गयी। उसके जाने के बाद मलिक व मालकिन एक दूसरे को देखा। मालिक बुदबुदाया - 'पता नहीं इन अनपढ़ लोगों को अक्ल कब आयेगी। जरा सी अफवाह उड़ी नहीं कि सभी भागने लगे।' तभी मालिक झोले उठाकर निकलने लगा तो मालकिन ने टोका - 'अरे कहां चले?' बाहर निकलते हुए मालिक ने कहा - 'घर में कुछ राशन आैर सब्जियां स्टोर कर लूं। पता नहीं क्या हो जाए। फिर दाम भी ज्यादा हो जाते हैं।' ..