नए साल में देश को संवारने का संकल्प होना चाहिए: अरविंद जयतिलक

लखनऊ(सौम्य भारत)। उमंग, उल्लास और संकल्प के नए साल के आगमन के साथ चतुर्दिक गीत-संगीत, हास-परिहास व उत्सव का वातावरण है। शुभकामनाएं प्रस्फुटित हो रही हैं और लोगों में नई उर्जा का संचार हो रहा है। यह उर्जा निराशाओं के भंवर से पार पाने और भविष्य के नए सपने बुनने-गढ़ने और उसे आयाम देने की प्रेरणा और संकल्प देता है। यह संकल्प ही जीवन को उत्सवधर्मी और अपराजेय बनाता है। नई ऊंचाइयों को छूने और विफलताओं को विस्मृत करने की उर्जा देता है। वैमनस्यता, कटुता, दुर्भावना और हीनता को पीछे ढ़केल समरसता, सहजता, उदारता और नवीनता को आत्मसात कर आगे बढ़ने की ताकत देता है। चैतन्यता से भरपूर यह संकल्प स्वयं के जीवन को समुन्नत बनाने के साथ-साथ समाज व देश की भाषा व सांस्कृतिक विरासत, विविधता, सर्वधर्म समभाव और लोकमान्यताओं को संवारने और सहेजने का आत्मबल देता है। उम्मीद और अपेक्षाओं के बीच यह नया साल भी उत्सवधर्मी भारतीय जनमानस को एक नया संकल्प, नई ऊंचाई और नया विचार देगा। विचारों के इस संकल्प को उर्वरता और मुखरता प्रदान कर उत्थान व विकास की नई लकीर खिंचनी होगी। राष्ट्र व समाज के उत्थान में ही स्वयं के उत्थान व विकास के बीज निहित होते हैं। भारतीय जनमानस को इस नए साल में इसी उत्थान व विकास के बीज के प्रकीर्णन का संकल्प लेना होगा। इस बीज के प्रस्फुटन से ही देश में तरक्की का अमृत रस छलकेगा और सौहार्द का वातावरण निर्मित होगा। तरक्की व सौहार्द के जुड़ाव से ही राष्ट्र व समाज की चेतना मजबूत होती है। बड़े-बड़े संकल्पों और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। राष्ट्र का मान और शान बढ़ता है। यह नया साल इन्हीं संकल्पों को पूरित करने का का एक क्षण है। इसी क्षण में संकल्पों के जरिए भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी और धार्मिक-सांस्कृतिक टकराव को मिटाया जा सकता है। इसी क्षण में भारत राष्ट्र के सनातन मूल्यों को सहेजा जा सकता है। इसी क्षण में लोककल्याण के मार्ग के विध्न-बाधाओं को दूर किया जा सकता है। बस संकल्पों को साधने की जरुरत है। और यह कार्य हम छोटे-छोटे प्रयासों से कर सकते हैं। बस सिर्फ आसपास नजरें दौड़ाने की जरुरत है। हमारे आसपास अभावग्रस्त लोगों की कमी नहीं है। हम इन्हें मदद और जागरुकता के जरिए नए साल का उपहार दे सकते हैं। उदाहरण के लिए इस समय भीषण ठंड है। ऐसे हजारों लोग हैं जिनके पास गरम कपड़े नहीं हैं। वे ठंड से ठिठुर रहे हैं। ठंड और भूख से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही हैं। हम इन्हें कपड़े और भोजन प्रदान कर उनकी रक्षा और सेवा कर सकते हैं। सेवा को परमोधर्म कहा गया है। इसी सेवा भाव से हम स्कूल जाने वाले गरीब घरों के बच्चों की मदद कर सकते हैं। मसलन उन्हें स्वेटर, गर्म कपड़े और जूते-मोजे और पाठ्य-पुस्तकें देकर उनकी राह आसान कर सकते हैं। अच्छी बात है कि कई छोटे-बड़े स्वयंसेवी संगठन इस पुनीत कार्य में जुटे हैं। अगर यहीं कार्य हर संपन्न व्यक्ति के स्तर से हो तो समाज के अभावग्रस्त लोगों को मदद पहुंचेगा और समाज में एक सकारात्मक संदेश जाएगा। यह सकारात्मक संदेश रुपी उर्जा ही एक राष्ट्र को दुनिया के अग्रिम देशों की कतार में खड़ा करती है। सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करती है। अंतिम हाशिए पर पड़े अभावग्रस्त लोगों के होठों पर मुस्कान व मिठास लाती है। गांधी जी के सपने को आकार देती है। इस दिशा में सरकार की पहल भी सराहनीय है। वह शहरों में रैन बसेरों के जरिए ठंड से रक्षा कर रही है। इसके अलावा सरकार द्वारा देश के गरीबों और जरुरतमंदों के कल्याण के लिए कई लाभकारी योजनाएं चला रही हैं। लेकिन बढ़ती आबादी की चुनौतियों को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। इससे निपटने के लिए जन-जन की सहभागिता आवश्यक है। अब वक्त आ गया है कि सरकार देश में जनसंख्या नीति लागू करे और देश का जनमानस उसे स्वीकारे। देश की समस्याओं का जड़ बढ़ती हुई जनसंख्या ही है। भीषण जनसंख्या के कारण आज देश में हजारों लोग ऐसे हैं जो भूखे पेट रातें गुजारते हैं। दूसरी ओर हर वर्ष लाखों टन भोजन बर्बाद बर्बाद हो जाता है। हमलोग घर में बचे भोजन को इधर-उधर फेंक देते हैं। अगर आसपास के ही भूखे लोगों तक बचे हुए भोजन को पहुंचाया जाए तो यह बहुत बड़ी सेवा होगी। वैसे भी भारत की सनातक संस्कृति और मूल्य मिलजुलकर रहने और मिलबांटकर खाने की प्रेरणा देते हैं। हम इन आजमाए और बताए मूल्यों पर आगे बढ़ एक स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं। हमारे आसपास ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो बीमार और अस्वस्थ हैं। उनमें जागरुकता की कमी के कारण अस्पताल जाने के बजाए अंधविश्वास के कारण ओझा-गुनी से इलाज कराते हैं। हमलोग ऐसे लोगों को जागरुक कर एवं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचाकर उन्हें स्वस्थ्य बनाने में मदद कर सकते हैं। इस कार्य में देश के नागरिकों के साथ-साथ चिकित्सक भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे अपने ही आसपास रहने वाले गरीब लोगों का निःशुल्क इलाज कर और उन्हें दवा प्रदान कर उनकी सेवा कर सकते हैं। चिकित्सकों को दूजा भगवान की संज्ञा दी गयी है। उन्हें भगवान का धर्म निभाना चाहिए। इसी तरह देश के वकील, नौकरशाह, सरकारी कर्मचारी और उद्योगपति भी देश को संवारने में अपना सकारात्मक योगदान दे सकते हैं। भारतीय जन इस नए साल में जागरुकता के जरिए और भी कई तरह से जरुरतमंदों की मदद कर सकते हैं। मसलन देश में लाखों ऐसे लोग हैं जो यह जानते हुए भी कि बगैर हेलमेट के गाड़ी चलाने से जान जाने का जोखिम बना रहता है फिर भी वे अपनी आदत से बाज नहीं आते हैं। अगर इस नए साल में देश का हर नागरिक ऐसे लोगों को जागरुक करने का बीड़ा उठा ले तो हजारों लोगों की जिंदगी बच सकती है। दूसरी ओर देश प्रदूषण की समस्या से कराह रहा है। हर वर्ष लाखों लोग प्रदूषण के कारण जान गंवा रहे हैं। प्रदूषण के कारण लोगों की उम्र कम होती जा रही है। इस प्रदूषण के लिए देश के नागरिक ही जिम्मेदार है। इस वर्ष हमलोग प्रदूषण न फैलाने का संकल्प लेकर पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। प्रदूषण की तरह गंदगी भी एक भीषण समस्या है। गंदगी के कारण विभिन्न किस्म के रोग उत्पन हो रहे हैं। सरकार को हर वर्ष इन रोगों से निपटने के लिए हजारों करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं। गंदगी मिटाने के लिए देश में स्वच्छता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मन की बात के जरिए लोगों को जागरुक कर रहे हैं। हमलोग इस नए साल में समूहबद्ध होकर अपने आसपास की गंदगी को साफ करने और वातावरण को स्वच्छ बनाने का संकल्प ले सकते हैं। अगर ऐसा करते हैं तो बीमारियो पर खर्च होने वाली धनराशि को शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मदों में खर्च किया जा सकता है। देश में नशाखोरी भी एक भीषण समस्या है। बिडंबना यह है कि युवाओं में नशाखोरी की प्रवृत्ति कम होने के बजाए ज्यादा बढ़ रही है। विगत दशकों में हर छोटे-बडे़ समारोहों में शराब सेवन का प्रचलन बढ़ा है। इससे युवाओं का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। साथ ही घर-परिवार तहस-नहस हो रहे हैं। दूसरी ओर शराब सेवन के कारण समाज में अपराध और बलात्कार का ग्राफ बढ़ रहा है। शराब के अलावा युवाओं में धूम्रपान की प्रवृत्ति बढ़ी है। कहा जाता है कि एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। इस वर्ष युवाओं को संकल्प लेना चाहिए कि वह शराबखोरी और ध्रुम्रपान से होने वाले नुकसान से जनमानस को सुपरिचित कराएंगे और स्वयं भी उसका परित्याग करेंगे। गांधी जी ने नशामुक्त भारत का सपना देखा था। उस सपने को देश के युवा पूरा कर सकते हैं। भारत एक विविधतापूर्ण बहुधर्मी व संस्कृति संपन्न देश है। यह एक खुबसुरती भी है। लेकिन जब देश में धार्मिक-सांस्कृतिक टकराव होते हैं तो देश की एकता और अखंडता को चोट पहुंचती है। हिंसा में लोगों को जान गंवाने पड़ते हैं और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह कि इन हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देने के लिए युवाओं का इस्तेमाल हो रहा है। अभी पिछले दिनों ही देश में कुछ नीतिगत मसलों पर व्यापक स्तर पर हिंसा और उपद्रव देखने को मिला। इस हिंसा और उपद्रव में बड़े पैमाने पर युवा चेहरे देखे गए। यह ठीक नहीं है। युवा उर्जा का उपयोग सकारात्मक होना चाहिए न कि नकारात्मक। युवाओं को भी समझना होगा कि उनका हिंसात्मक इस्तेमाल न हो। सच तो यह है कि युवा वर्ग ही देश में बदलाव का सबसे बड़ा संवाहक है। देश को बदलने, संवारने और सहेजने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उसके ही कंधों पर है। इस नए साल में भारत के युवाओं को संकल्प लेना चाहिए कि वह अपनी सकारात्ममक उर्जा से देश को नई ताकत देंगे।