धर्म तय करना सरकार का अधिकार नहीं है तो नागरिकता तय करने अधिकार नहीं हो सकता: भरत गांधी

- सरकार का नागरिकता तय करने अधिकार खत्म करने की मांग
असम(सौम्य भारत) राजनीति सुधारकों को दूसरे दिन संबोधित करते हुए वोटर्स पार्टी इंटरनेशनल के नीति निर्देशक विश्वात्मा  भरत गांधी ने कहा है कि वैश्वीकरण के इस युग में नागरिकता तय करने का अधिकार सरकारों के पास नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के प्रेम की भौगोलिक परिधि समान नहीं होती। किसी व्यक्ति को केवल अपने परिवार से प्रेम होता है और किसी दूसरे व्यक्ति को अपने गांव या अपनी जाति से प्रेम होता है। जबकि अन्य व्यक्ति को पूरे देश से प्रेम होता है लेकिन आज्ञा चक्री लोगों को संपूर्ण विश्व से प्रेम होता है।
उन्होंने कहा कि मानव मन के इस ऊर्ध्वाधर प्राकृतिक वर्गीकरण के कारण व्यक्ति के प्रेम की भौगोलिक परिधि क्या है, यह वह  व्यक्ति स्वयं ही जान सकता है। सरकार नहीं जान सकती। ऐसी स्थिति में सरकार किसी व्यक्ति की नागरिकता कैसे तय कर सकती है? कोई व्यक्ति पूरे विश्व से प्रेम करता है तो उसको किसी एक देश की नागरिकता लेने के लिए बाध्य कैसे कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि कौन कहां की नागरिकता धर्म और आस्था जैसे व्यक्ति की निजी व अंतरात्मा की चीज है इस सरकार की संस्था कैसे पहचान सकती हैं। व्यक्ति की नागरिकता तय करने के मामले में सरकारों को प्राप्त
अधिकार वैसा ही अधिकार है जैसे सरकार है व्यक्तियों के धर्म तय करने लगे और उनको यह निर्देश जारी करने लगे कि तुम हिंदू बनो या मुसलमान या किसी अन्य धर्म का अनुयाई बनो। श्री विश्वात्मा ने कहा कि जिस प्रकार व्यक्ति का धर्म तय करना सरकार का अधिकार नहीं हो सकता, उसी प्रकार व्यक्ति की नागरिकता तय करना भी सरकार का अधिकार नहीं हो सकता।
उन्होंने कहा कि नागरिकता के संबंध में पूरा संसार राजनीतिक अंधविश्वास से ग्रस्त है। उन्होंने कहा कि नागरिकता का जो वर्तमान अर्थ है यह यूरोप में 17वीं और 18वीं शताब्दी में तब पैदा हुआ जब सभ्यता और संस्कृति भौगोलिक सीमाओं कैद  रहने के लिए अभिशप्त थी।